झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों से हजारों लोग दिवाली मनाने वृंदावन आए हैं। वह हाथों में मोरपंख लिए हुए है और महिला और पुरुष नगर के प्राचीन सप्तदेवालयों में राधा गोविंददेव और विशाल रंगजी मंदिर में प्रभु का दर्शन और पूजन करने के बाद मंदिर में आदिवासी पारंपरिक नृत्य करते हैं।
झारखंड और मध्यप्रदेश से हजारों लोग तीर्थनगरी मथुरा के वृंदावन में आए हैं। घरों से दिवाली मनाने आए आदिवासी लोग भक्तिपूर्वक यमुना में अपने साथ लाए मोर पंखों को विसर्जन कर रहे हैं। वह वृंदावन की कुंज गलियों और यमुना किनारे पारंपरिक पोशाक में मोर पंख लिए नृत्य करता है। जो ब्रजवासी लोगों के आकर्षक स्थान बन गए हैं।
झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों से हजारों लोग दिवाली मनाने वृंदावन आए हैं। वह हाथों में मोरपंख लिए हुए है और महिलाओं और पुरुषों को नगर के प्राचीन सप्तदेवालयों में राधा गोविंददेव, राधादामोदर, राधामदनमोहन, राधागोकुलानंद और विशाल रंगजी मंदिर में प्रभु के दर्शन और पूजन के बाद मंदिर में आदिवासी पारंपरिक नृत्य करते हुए देखते हैं।
मंदिरों में विभिन्न राज्यों से आए भक्तों के कदम भी ठहर जाते हैं, ढोल-नगाड़ों की थाप के बीच इस अनूठे नृत्य और उनकी आस्था को देखने के लिए। झारखंड के डुमका जिले में रहने वाले सोरेन ने बताया कि वर्ष भर जो गोचारण के दौरान जंगलों में मोरपंख मिलते हैं।
बताया कि दिवाली को एकत्र करने के लिए वे वृंदावन जाते हैं। घर से निकलकर मौन व्रत करके वृंदावन जाते हैं। यहां आकर भगवान को देखने के बाद ही मौन व्रत खोला जाता है। यही कारण है कि ब्रजवासी लोग इन्हें आदिवासी मोनिया कहते हैं। यह धार्मिक परंपरा ब्रज को मध्यप्रदेश और झारखंड से जोड़ती है। मान्यता है कि वृंदावन के मंदिरों में प्रभु का दर्शन करने और उनके सामने नृत्य करने से जीव का उद्धार होता है।